नैन है री ये बटपारी।
कपट नेह करि करि इन हमसौ, गुरुजन तै करी न्यारी।।
स्याम-दरस-लाड़ कर दीन्हौ, प्रेम ठगौरी लाइ।
मुख परसाइ हँसनि मधुरता, डोलत संग लगाइ।।
मन इनसौ मिलि भेद बतायौ, विरह फाँस गर डारी।
कुल-लज्जा-संपदा हमारी, लूटि लई इन सारी।।
मोह बिपिन मैं परी, कराहति, नेह जीव नहिं जात।
'सूरदास' गुन सुमिरि सुमिरि वै अंतरगत पछितात।।2290।।