नैना लीनहरामी ये।
चोर, ढुढ, बटपार, कहावत, अपमारगी अन्यायी ये।।
निलज, निर्दयी, निसँक, पातकी, जैसे आपुस्वारथी वै।
वारे तै प्रतिपालि बढाए, बडे भए तब गए तजि कै।।
हमकौ निदरि करत सुख हरि सँग, वै उनकौ लीन्हौ हित कै।
मिले जाइ 'सूरज' के प्रभु कौ, जैसै मिलत नीर अरुपै।।2285।।