नैना मानअपमान सह्यौ।
अति अकुलाइ मिले री वरजत, जद्यपि कोटि कह्यौ।।
जाकी बानि परी सखि जैसी, सो तिहि टेक रह्यौ।
ज्यौ मरकट मूठी नहि छाँड़त, नलिनी सुवा गह्यौ।।
जैसै नीर प्रवाह समुद्रहिं, माँझ बह्यौ सु बह्यौ।
'सूरदास' इन तैसिय कीन्ही, फिरि मोतन न चह्यौ।।2314।।