नैंकु गोपालहिं मोकौं दै री।
देखौं वदन कमल नीकैं करि, ता पाछै तू कनियां लै री।
अति कोमल कर-चरन-सरोरुह-अधर-दसन-नासा सोहै री।
लटकन सीस, कंठ मनि भ्राजत, मनमथ कोटि वारनैं गै री।
बासर-निसा बिचारति हौं सखि, यह सुख कबहुँ न पायौ मैं री।
निगमनि-धन सनकादिक-सरबस बड़े भाग्य पायौ है तैं री।
जाकौ रूप जगत के लोचन, कोटि चंद्र-रवि लाजत भै री।
सूरदास बलि जाइ जसोदा, गोपिनि-प्रान पूतना-बैरी।।55।।