नीकैं देहु न मेरौ गिंड़ुरी।
लै जैहैं धरि जसुमति आगैं, आवहु री सब मिलि इक झुंडरी।।
काहूँ नहीं डरात कन्हाई, बाट-घाट तुम करत अचगरी।
जमुना-दह गिंडुरी फटकारी, फोरी सब मटुकी अरु गगरी।।
भली करी यह कुंवर कन्हाई, आजु मेटिहैं तुम्हरी लँगरी।
चलीं सूर जसुमति के आगैं, उरहन लै ब्रज-तरुनी सगरी।।1416।।