निकसि कुँवर खेलन चले -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


निकसि कुँवर खेलन चले, रँग होरी।
मोहन नंदकिसोर, लाल रँग होरी।।
कंचन माट भराइ कै, रँग होरी।
सौधै भरयौ कमोर, लाल रँग होरी।।
झाँझ ताल सुर मडले, रँग होरी।
बाजत मधुर मृदंग, लाल रँग होरी।।
तिन मैं परम सुहावनी, रँग होरी।
महुवरि बाँसुरि चग, लाल रँग होरी।।
खेलत रँगीले लाल जू, रँग होरी।
गए वृषभानु की पौरि, लाल रँग होरी।।
जे ब्रज हुती किसोरिका, रँग होरी।
ते सब आई दौरि, लाल रँग होरी।।
सखि सुख देखन कारने, रँग होरी।
गाँठि दुहुँनि की जोरि, लाल रँग होरी।।
फगुआ दियौ न जाइ जौ, रँग होरी।
लागौ राधा पाइ, लाल रँग होरी।।
यह सुख सबकै मन बसौ, रँग होरी।
'सूरदास' बलि जाइ, लाल रँग होरी।।2866।।

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