बार-बार फन-घात कै, विष-ज्वाला की झार।
सहसौ फन फनि फुंकरै, नैंकु न तिन्हैं बिकार।
तव काली मन कहत, पूँछ चाँपी इहिं पग सौं।
यह बालक धौं कौन कौ, कीन्हौ जुद्ध बनाइ।
दाउँ घात बहुतै कियौ, मरत नहीं जदुराइ।
पुनि देख्यौ हरि-ओर पूँछ चाँपी इहिं मेरी।
मन-मन करत बिचार, लेउँ याकौं मैं धेरी।
दाउँ परयौ अहि जानि कै, लियौ अंग लपटाइ।
काली तब गरबित भयौ, प्रभु दियौ दाउँ बताइ।
कहति उरग को नारि, गर्व अतिहीं करि आयौ।
आइ पहुँच्यौ काल बस्य, पग इतहिं चलायौ।
अहि नारिन सौं यह कही, मो समसरि कोउ नाहिं।
एक फूँक विष ज्वाल की, जल-डूँगर कोउ नाहिं।
गर्ब-बचन प्रभु सुनत, तुरतहीं, तन बिस्तारयौ।
हाय-हाय करि उरग, बारहीं बार पुकारयौ।
सरन सरन अब मरत हौं, मैं नहिीं जान्यौ तोहिं।
चटचटात अँग फटत हैं, राखु-राखु प्रभु मोहिं।
स्रवन सरन धुनि सुनत, लियौ प्रभु तनु सकुचाई।
छमहु मोहिं अपराध, न जानैं करि ढिठाई।
ब्रजहिं कृष्न-अवतार हौ, मैं जानी प्रभु आज।
बहुत किए फन-घात मैं, बदन दुरावत लाज।
रह्यौ आनि इहिं ठौर, गरुड़ कैं त्रास गुसाई।
बहुत कृपा मोहिं करी, दरस दीन्हौ जग-साई।
नाक फोरि फन पर चढ़े, कृपा करी जदुराइ।
फन-फन-प्रति हरि चरन धरि, निरतत हरष बढ़ाइ।
धन्य कृष्न, धनि उरग जानि जन कृपा करी हरि।
धन्य-धन्य दिन आजु, दरस तैं पाप गए जरि।