नद कहौ हो कहँ छाँड़े हरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


नद कहौ हो कहँ छाँड़े हरि।
लै जु गए जैसै तुम ह्याँते, ल्याए किन वैसहिं आगै धरि।।
पालि पोषि मैं किए सयाने, जिन मारे गज मल्ल कंस अरि।
अब भए तात देवकी वसुद्यौ, बाहँ पकरि ल्याये न न्याव करि।।
देखौ दूध दही घृत माखन, मैं राखे सब वैसै ही धरि।
अब की खाइ नंदनदन बिनु, गोकुल मनि मथुरा जु गए हरि।।
श्रीमुख देखन कौ व्रजवासी, रहे ते घर आँगन मेरै भरि।
‘सूरदास’ प्रभु के जु संदेसे, कहे महर आँसू गदगद करि।। 3132।।

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