नंद-नँदन, इक सुनौ कहानी।
पहिली कथा पुरातन सुनि हरि जननि-पास मुख बानी।
रामचंद्र दसरथ-सुत, ताकी जनक-सुता गृह-रानी।
कहैं तात के, पंचबटी बन, छांड़ि चले रजधानी।
तहाँ बसत सीता हरि लीन्ही, रजनीचर अभिमानी।
लछिमन, धनुष देहु, कहि उठे हरि, जसुमति सूर डरानी।।199।।