नंद-नँदन, इक सुनौ कहानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ



नंद-नँदन, इक सुनौ कहानी।
पहिली कथा पुरातन सुनि हरि जननि-पास मुख बानी।
रामचंद्र दसरथ-सुत, ताकी जनक-सुता गृह-रानी।
कहैं तात के, पंचबटी बन, छांड़ि चले रजधानी।
तहाँ बसत सीता हरि लीन्ही, रजनीचर अभिमानी।
लछिमन, धनुष देहु, कहि उठे हरि, जसुमति सूर डरानी।।199।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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