नंदनँदन वार वार रवनिपथ जोहै री।
लोचन हरि करि चकोर, राधा-मुख-चंद-ओर, देखत नहिं तिमिर भोर, मनही मन मोहै री।।
नैना दोउ भृंग रूप, बदन कमल-सरदऽनूप, तरनि कौ प्रकास मिलन बिना चपल डोलै री।
लोचन मृग सुभग जोर, राग रूप भए भोर, भौंह धनुष, सरकटाच्छ, सुरति व्याध तोलै री।।
कीधौ ये चच्छु चारु, प्यारी मुख रूप सारु, स्याम देखि रीझे, मन यहै साँच मानी री।
'सूर' स्याम-सुखद-धाम, राधा है जाहि नाम, आतुर पिय जानि गवन प्यारी अतु-रानी री।।1978।।