दोऊ राजत स्यामा स्याम।
ब्रज-जुवती-मंडली बिराजति, देखति सुरगन बाम।।
धन्य धन्य वृंदाबन कौ सुख, सरपुर कौनैं काम।
धनि वृषभानु-सुता, धनि मोहन, धनि गोपिनि कौ नाम।।
इनकी को दासी सरि ह्वै है धन्य सरद की जाम।
कैसेहुँ सूर जनम ब्रज पावैं, यह सुख नहिं तिहुँ धाम।।1078।।