दोऊ राजत स्यामा स्याम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग देवगंधार


दोऊ राजत स्यामा स्याम।
ब्रज-जुवती-मंडली बिराजति, देखति सुरगन बाम।।
धन्य धन्य वृंदाबन कौ सुख, सरपुर कौनैं काम।
धनि वृषभानु-सुता, धनि मोहन, धनि गोपिनि कौ नाम।।
इनकी को दासी सरि ह्वै है धन्य सरद की जाम।
कैसेहुँ सूर जनम ब्रज पावैं, यह सुख नहिं तिहुँ धाम।।1078।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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