देह धरे कौ कारन सोई।
लोक-लाज कुल-कानि न तजियै, जातैं भलौ कहै सब कोई।।
मातु पिता के डर कौं मानै, मानै सजन कुटुँब सब लोई।
तात मातु मोहुँ कौं भावत, तन धरि कै माया-बस होई।।
सुनि बृषभानु-सुता मेरी बानी, प्रीति पुरातन राखहु गोई।
सूर स्याम नागरिहिं सुनावत, मैं तुम एक नाहिं हैं दोई।।1691।।