देखौ माई सुंदरता की रास।
अति प्रबीन वृषभानु-नंदिनी निरखि बँध्यौ दृगपास।।
अग अग प्रति अमित माधुरी भ्रकुटी मदन बिलास।
जब तै दृष्टि परी सुंदरता बस कियौ बिनहिं प्रयास।।
प्रथम समागम कौ सुनि सुदरि उपजति है अति त्रास।
अब तौ मन बच क्रम सब दीन्हौ सुनि सुनि ‘सूरजदास’।। 58 ।।