देखौ माई या बालक को बात।
बन-उपवन, सरिता-सर मोहे, देखत स्यामल गात।
मारग चलत अनीति करत है, हठ करि माखन खात।
पीताम्बर वह सिर तैं ओढ़त, अंचल दै मुसुकात।
तेरी सौं कहा कहौं जसोदा, उरहन देति लजात।
जब हरि आत तेरे आगैं सकुचि तनक ह्वै जात।
कौन-कौन गुन कहौं स्याम के, नैकु न काहुँ डरात।
सूर स्याम मुख निरखि जसोदा, कहति कहा यह बात।।338।।