देखि सखी बन तैं जु बने ब्रज -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



देखि सखी बन तैं जु बने ब्रज आवत हैं नँदनंदन।
सिखी सिखंड सीस, मुख मुरली, बन्‍यौ तिलक, उर चंदन।
कुटिल अलक मुख चंचल लोचल, निरखत अति आनँदन।
कमल मध्‍य मनु द्वै खग खंजन, बँधे आइ उडि़ फंदन।
अरुन अधर छबि दसन बिराजत, जब गावत कल मंदन।
मुक्‍ता मनौ नील- मनि-मय-पुट, धरे भुरकि बर बंदन।
गोप वेष गोकुल गो चारत हैं हरि असुर-निकंदन।
सूरदास प्रभु सुजस बखानत नेति नेति श्रुति छंदन।।476।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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