देखि दसा सुकुमारि की -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


देखि दसा सुकुमारि की, जुवती सब धाईं।
तरु तमाल बूझति फिरैं कहि-कहि मुरझाईं।।
नंद-नंदन देखे कहूँ, मुरली कर-धारी।
कुंडल, मुकुट, बिराजई, तनु स्यामल-भारी।।
लोचन चारु बिसाल हैं, नासा अति लोनी।
अरुन अधर दसनावलो-छबि चारु चकोनी।।
विंब, प्रवालनि लाजहीं, दामिनि-दुति थोरी।
ऐसे हरि हमकौं कहौ, कहुँ देखे हो री।।
अंग-अंग छबि कह कहौं, देखैं बनि आबै।
सूर स्याम देखे नहीं, कोउ काहि बतावै।।1118।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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