दिन ही दिन को सहै बियोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


दिन ही दिन को सहै वियोग।
यह सरीर नाहिन मेरौ सखि, इते बिरह जुर जोग।।
रचि स्रककुसुम, सुगध सेज सजि, बसन कुकुमा बोरि।
नलिनी दलनि दूरि करि उर तै, कचुकी के बँद छोरि।।
बनबन जाइ, भोर, चातक, पिक, मधुपनि टेरि सुनाइ।
उदित चद, चदन चढ़ाई उर, त्रिबिधि समीर बहाइ।।
रटि मुख नाम स्याम सुदर कौ, तोहिं सुनाइ सुनाइ।
'सूरदास' स्वामी कृपालु भए, जानि जुवति रसरीति।।
तेहि छिन प्रगट भए मनमोहन, सुमिरि पुरातन प्रीति।। 3292।।

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