दधि लूटी आजु बृंदाबन -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग नट




(दधि लूटी) आजु बृंदाबन मैं दधि लूटी।
कहुँ मेरौ हार, कहूँ नकबेसरि, कहुँ मोतिनि की लर टूटी।।
बरजि जसोमति अपनै कान्हर, झकझोरत मटुकी फूटी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस कौ, सरबस दै ग्वालिनि छूटी।। 64 ।।

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