तोहि कारी कामरि लकुटि अब भूलि गई, नव पीतांबर दुहुँ करनि बिलासी।
गोकुल की गायनि चराइबौ है छाँड़ि दयो, नवलनि संग डौलै परम बिसासी।।
गोरस चुराइ खाइ बदन दुराइ राखै, मन न धरत बृंदाबन कौ मवासी।।
सूर स्याम तोहि घर-घर सब जानत है, इहाँ बलि को है सो तिहारी जो है दासी।।1477।।