तुम देखे मैं नहीं पत्यानी।
मै जानति मेरी गति सबही, यहै साँच अपनै मन आनी।।
जो तुम अंग अंग अवलोक्यौ, धन्य धन्य मुख अस्तुति गानी।
मैं तो एक अंग अवलोकति, दोऊ नैन गए भरि पानी।।
कुंडल झलक कपोलनि आभा, मैं तो इतनेहि माँझ बिकानी।
इकटक रही नैन दोउ रूँधे, ‘सूर’ स्याम कौ नहिं पहिचानि।।1782।।