झूठेहिं मोहिं लगावति ग्वारि।
खेलत तैं मोहिं बोलि लियौ इहिं, दोउ भुज भरि दीन्हीं अँकवारि।
मेरे कर अपनैं उर धारति, आपुन ही चोली धरि फारि।
माखन आपुहिं मोहिं खवायौ, मैं धौं कब दीन्हौ है डारि।
कह जानै मेरौ बारौ भोरौ, झुकी महरि दै दै मुख गारि।
सूर स्याम ग्वालिनि मन मोह्यौ, चितै रही इकटकहिं निहारि।।304।।