झाई न मिटत न पाई -सूरदास

सूरसागर

अष्टम स्कन्ध

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राग सारंग



झाई न मिटत न पाई, आए हरि आतुर ह्वै,
जान्यौ जब गज ग्राह लिए जात जल मैं।
जादौपति, जदुनाथ छँडि़ खगपति-साथ,
जानि जस विह्वल, छुड़ाइ लीन्हौ पल मै,
नीरहू तै न्यारी कीनो, चक्र नक्र-सीस छीनौ,
देवकी के प्यारे लाला ऐचि लाए थल मैं।
कहै सूरदास देखि नैननि को मिटी प्यास,
कृपा कीन्ही गोपीनाथ, आए भुव-तल मैं।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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