जो सुख होत गुपालहि गाऐं -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग सारंग




जो सुख होत गुपालहि गाऐं।
सी सुख होत न जप-तप कान्हैं, कोटिक तीरथ नहाऐं।
दिऐं लेत नहिं चारि पदारथ, चरन-कमल चित लाऐं।
तीनि लोक तृन-सन करि लेखत, नंद-नँदन उर आऐं।
बंसीबट, बृंदाबन, जमुना तजि बैंकुठ न जावै।
सूरदास हरि कौ सुमिरन करि, बहुरि न भव-जल आवै।।6।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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