जसोदा ऊखल बाँधे स्याम।
मन मोहन बाहिर ह्मी छाँड़े, आपु गई गृह-काम।
दह्यौ मथति, मुख तै कछु बकरति गारी दे लै नाम।
घर-घर डोलत माखन चोरत, षट-रस मेरैं धाम।
ब्रज के लरिकनि मारि भजत हैं, जाहु तुमहु बलराम।
सूर स्याम ऊखल सौं बाँधे, निरखहिं ब्रज की बाम।।379।।