गोपी यहै करति चवाउ।
देखौ धौं चतुराइ वाकी हमहिं कियौ दुराउ।।
लरिकई तैं करति ये ढँग, तब रहे सति भाउ।
अब करति चतुरई जानैं, स्याम पढ़ए दाउ।।
कहाँ लौं करिहै अचगरी, सबै ये उपजाउ।
आजु बाँची मौन धरि जौ, सदा होत बचाउ।।
दिवस चारिक भोर पारहु, रहौ एक सुभाउ।
सूर काल्हिहिं प्रगट ह्वैहै, करन दै अपड़ाउ।।1744।।