गोपनि सौं यह कहत कन्हाई।
जो मैं कहत रह्यौ भयौ सोई, सुपनांतर प्रगटयौ अब आई।।
जो माँग्यौ चाहौ सो माँगौ, पावहुगे जो मन भाई।
कहत नंद सब तुमहीं दीन्हौ, माँगतु हौं हरि की कुसलाई।।
कर जोरे नंद आगैं ठाढ़े, गोबर्धन की करत बड़ाई।
ऐसौ देव कहूँ नहिं देख्यौ, सहस भुजा धरि खात मिठाई।।
सदा तुम्हारी सेवा करिहौं, और देव नहिं करौं पुजाई।।
सूर स्याम कौं नोकैं राखौ, कहत महर ये हलधर भाई।।840।।