गोकुल कौ कुल-देवता -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


गोकुल कौ कुल-देवता, श्री गिरिधर लाल।
कमल नयन घन-साँवरौ, बपु‍-बाहु-बिसाल।।
हलधर ठाढ़े कहत हैं, हरि के ये ख्याल।
करता हरता आपुहीं, आपुहिं प्रतिपाल।।
वेगि करौ मेरे कहैं, पकवान रसाल।
वह मधवा बलि लेत है, नित करि-करि गाल।।
गिरि गोबर्धन पूजियै, जीवन गोपाल।
जाफे दीन्हैं बाढ़हीं गैया, गन-जाल।।
सब मिलि भोजन करत हैं, जहँ-तहँ पसु-पाल।
सूरदास डरपत रहैं, जातैं जम काल।।823।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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