कौन कुमति आई री जो कह्यौ न मानति।
छाँड़ि मान सुनि बात सयानी कत हरि सौ हठ ठानति।।
यह निसि वृथा बिहाइ पिया बिनु सोचत नहिं उर आनति।
वोउच स्याम स्याम दामिनि कौ मनौ सरद रितु जल घटत न जानति।।
धनुष कला सु सही सब सिखि कै, भई सयानी गानति।
'सूर' स्याम सुंदरी आपुही, कह तू सर संधानति।।2802।।