कौतुक देखत सुर-नर भुले। रोम-रोम गदगद सब फूले।।
सुरनि बिमान सुमन बरषाए। जय धुनि सब्द देव नभ गाए।।
देव कह्यौ ब्रज बासिनि सौं तब। पूजा भली करी मेरी सब।।
जाहु सबै मिलि सदन करौ सुख। स्याम कहत गिरि-गोबर्धन-मुख।।
ग्वाल करत अस्तुति सब ठाढ़े। प्रेम-भाव सब कैं चित बाढ़े।।
भवन जाहु कहो श्रीमुख बानो। भोजन सेस स्याम कर आनी।।
बाँटि प्रसाद सबनि कौं दीन्हौ। ब्रज-नारी-नर आनँद कीन्हौ।।
सूर स्याम गोपनि सुखकारी। कह्यौ चलौ ब्रज कौं नर-नारी।।917।।