कोउ माई बरजै री या चंदहिं।
अति ही क्रोध करत है हम पर, कुमुदिनि कुल आनंदहि।।
कहाँ कहौ बरषा रबि तमचुर, कमल बलाहक कारे।
चलत न चपल रहत थिर कै रथ, विरहिनि के तन जारै।।
निंदतिं सैल उदधि पत्रग कौ, श्रीपति कमठ कठोरहिं।
देति असीस ज़रा देवी कौ, राहु केतु किन जोरहिं।।
ज्यौ जल हीन मीन तन तलफति, ऐसी गति ब्रजबालहिं।
'सूरदास' अब आनि मिलावहु, मोहन मदन गुपालहिं।। 3359।।