केहिं मारग मैं जाउँ सखी री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग परासी


केहिं मारग मै जाउँ सखी री, मारग मोहिं बिसरयौ।
ना जानौं कित ह्वै गए मोहन, जात न जानि परयौ।।
अपनौ पिय ढूंढति फिरौं, मोहिं मिलिबे कौ चाव।
कांटो लाग्यौ प्रेम कौ, पिय, यह पायौ दाव।।
बन डोंगर ढूंढ़त फिरी, घर मारग तजि गाउँ।
बूभौं द्रुम प्रति बेलि कोउ, कहै न पिय कौ नाउं।
चकित भई, चितवत फिरी, ब्याकुल अतिहि अनाथ।
अब कैं जौ कैसहुं मिलौं, पलक न त्यागौं साथ।।
हृदय मांझ पिय-घर करौं, नैननि बैठक देउं।
सूरदास प्रभु संग मिलौं, बहुरि रास-रस लेउं।।1111।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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