कृपा करी उठि भोरहीं मेरैं गृह आए।
अब हम भईं बड़भागिनी, निसिचिह्न दिखाए।।
जावक भालनि सौ दियौ, नीकै बस पाए।
नैन देखि चकित भई, त्यौ पान खवाए।।
अधरनि पर काजर बन्यौ, बहुरंग कहाए।
बंदन बिदुली भाल की, भुज आप बनाए।।
यह मोसौ तुमही कहौ, उरछत अरुनाए।
'सूर' स्याम जसरासि हौ, धनि तिया हँसाए।।2689।।