कृपा अब कीजिऐ बलि जाउँ।
नाहिन मेरैं और कोउ बलि, चरन कमल बिनु ठाउँ।
हौं असौच, अक्रित, अपराधी, सनमुख होत लजाउँ।
तुम कृपाल, करुनानिधि, केसव, अधम-उधारन-नाउँ।
काकैं द्वार जाइ होउँ ठाढ़ौ, देखत काहि सुहाउँ।
असरन सरन नाम तुम्हारौ, हौं कामी, कुटिल, निभाउँ।
कलुषी अरु मन मलिन बहुत मैं सेंत-मेंत न बिकाउँ।
सूर पतितपावन पद अंबुज, सो क्यौं परिहरि जाउँ।।।।128।।