कृपा अब कीजिऐ बलि जाउं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग गूजरी



कृपा अब कीजिऐ बलि जाउँ।
नाहिन मेरैं और कोउ बलि, चरन कमल बिनु ठाउँ।
हौं असौच, अक्रित, अपराधी, सनमुख होत लजाउँ।
तुम कृपाल, करुनानिधि, केसव, अधम-उधारन-नाउँ।
काकैं द्वार जाइ होउँ ठाढ़ौ, देखत काहि सुहाउँ।
असरन सरन नाम तुम्‍हारौ, हौं कामी, कुटिल, निभाउँ।
कलुषी अरु मन मलिन बहुत मैं सेंत-मेंत न बिकाउँ।
सूर पतितपावन पद अंबुज, सो क्‍यौं परिहरि जाउँ।।।।128।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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