कुविजा मिली कह्यौ यह बात।
मातु पिता वसुदेव देवकी मन दुख मुख हरषात।।
सुदरि भई अंग परसत ही करी सुहागिनि भारी।
नृपति कान्ह कुविजा पटरानी हँसति कहतिं व्रजनारी।।
सौति साल उर मैं अति साल्यौ नखसिख ली भहरानी।
‘सूरदास’ प्रभु ऐसेइ माई कहतिं परस्पर बानी।। 3142।।