कुबिजा सी भागिनि को नारि।
कंसहि चंदन लिए जाति ही, बीच मिले ताकौ दैत्यारि।।
हरि हरि कृपा पटरानी, वाकौ डारयौ कुब्ज मिटारि।
यह बात मधुपुरी जहाँ तहँ, दासी कहत डरत जिय भारि।।
कुबिजा भूलि रहत जौ काऊ, ताहि उठत दै दै सब गारि।
सुनहु 'सूर' रानी सुनि पावै, त्रास होत जनि डारै मारि।।3106।।