कुबिजा नहिं तुम देखी है।
दधि वेचन जब जाति मधुपुरी, मै नीकै करि पेषी है।।
महल निकट माली की बेटी, देखत जिहिं नरनारि हँसै।
कोटि बार पीतरि जौ दाहौ, कोटि बार जो कहा कसै।।
सुनियत ताहि सुदरी कीन्ही, आपु भए ताकौ राजी।
‘सूर’ मिलै मन जाहि जाहि सौ, ताकौ कहा करे काजी।। 3147।।