कुंजभवन राधा मनमोहन।
रति बिलास करि मगन भए अति, निरखत नैन लजौहन।।
तियतन कौ दुख दूरि कियौ पिय, दै दै अपनी सौहन।
बार बार भुज धरि अंकम भरि, मिलि बैठे दोउ गोहन।।
पीतांबर पट सौ मुख पोछ्त, हरषि परस्पर जोहन।
'सूर' स्याम स्यामा मन रिझवत, पीन कुचनि टकटोहन।।2174।।