कियौ मनकाम नहि रही बाकी।
प्रिया रिस दूरि कै, दियौ रस पूरि कै, अनँगबल दूरि कै गोपजा की।।
नंदसुत लाडिले, प्रेम के चाँड़िले सौह दै कहत है नारि आगै।
तुम परम भावती प्रानहूँ तै खरी, सुख नहीं लहत मैं तुमहि त्यागै।।
तुमहिं धन, तुमहि तन, तुमहिं मनही बसौ, और तिय नहीं मो मनहिं भावै।
'सूर' प्रभु चतुर वर, चतुर नागरिनि के, चतुरई बचन कहि मन चुरावै।।2490।।