काहै करति हौ संदेह -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


काहै करति हौ संदेह।
ऊधौ के सदेसनि छाती होन चहत है वेह।।
जिनकै विरह रैनि औ वासर, वन समान भयौ गेहु।
तिन गुपाल कौ निकट बतावत, खोजि हृदै मैं लेहु।।
जीवत रही आजु लौ सोचनि, अचरज मानहु एहु।
रोकै हियौ जु ’सूर’ पुरातन, कान्ह कुँवर कौ नेहु।।4006।।

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