काहे कौं परतिय हरि आनी -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
काहे कौं परतिय हरि आनी ?
यह सीता जो जनक की कन्‍या, रमा आपु रघुनंदन-रानी।
रावन मुग्‍ध, करम के हीने, जनक सुता तैं तिय करि मानी!
जिनकैं क्रोध पुहुमि-नभ पलटै, सूखै सकल सिंधु कर पानी!
मूरख सुख निद्रा नहिं आवै, लैहैं लंक बीस भुज भानी।
सूर न मिटै भाल की रेखा, अल्‍प मृत्‍यु तुव आइ तुलानी॥116॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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