कान्ह अब लँगराई हौं जानी।
माँगत दान दही कौ अबलौं, अब कछु औरै ठानी।।
औरनि सौं तुम कहा लियौ है, हमहिं दिखावहु आनी।
माँगत हे दधि सो हम दीन्हौ, कहा कहत यह बानी।।
छाँड़ि देहु अंचरा फटि जैहै, तुमकौं हम पहिचानी।।
सूर स्याम तुम रति-पति-नागर, नागरि अतिहिं सयानी।।1474।।