कान्ह कह्यौ बन रैनि न कीजै, सुनहु राधिका प्यारी।
अति हित सौ उर लाइ कह्यौ, अब भवन आपनै जा री।।
मातुपिता जिय जानै न कोऊ, गुप्त-प्रीति-रस भारी।
कर तै कौर डारि मैं आयौ, देखत दोउ महतारी।।
तुम जैसी मोहिं प्यारी लागति, चंद चकोर कहा री।
'सूरदास' स्वामी इन बातनि, नागरि रिझई भारी।।1996।।