कहि धौं सखी बटाऊ को हैं -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री


 
कहि धौं सखी बटाऊ को हैं ?
अद्भुत बधू लिए सँग डोलत देखत त्रिभुवन मो हैं।
परम सुसील सुलच्‍छन जोरी, बिधि की रची न होइ।
काकी तिनकौं उपमा दीजै, देह धरे धौं कोइ।
इनमैं को पति आहिं तिहारे, पुरजनि पूँछैं धाइ।
राजिवनैन मैन की मूरति, सैननि दियौ बताइ।
गई सकल मिलि संग दूरि लौं, मन न फिरत पुर-वास।
सूरदास स्वामी के बिछुरत, भरि भरि लेतिं उसास॥45॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः