कहियौ मुख संदेस जु हरि कै, हाथ दीजियौ पाती।
समय पाइ व्रज बात चालिबौ, सुख ही माँझ सुहाती।।
हम प्रतीति करि सरबस अरप्यौ, गन्यौ नही दिन राती।
नंदनँदन यह जुगुति न होई, लै जु रहे मन थाती।।
जौ तब साखि दीजतौ काहू, तौ अब कत पछिताती।
‘सूरदास’ प्रभु मुकर जानती, तौ सँग लीन्हे जाती।।4063।।