कहा वह मोतिसरि, जो गँवाई री।
बबा सौ और लैहौ मँगाई री।।
वै कहा करैगी, सैति राखे री।
ता दिन तुही धौ, कितिक भाखे री।।
नैन भरि लेति, कह, और नाही री।
छार मोतिसरि कौ मोहि रिसाही री।।
सदूखनि भरि धरे, सो न खोलै री।
कहा मोसौ खीझि खीझि बोलै री।।
सुता वृषभानु की हरष मनही री।
'सूर' प्रभु सैन दै बोले बनही री।।1974।।