कहा डर करौं इहिं फनिग कौ बाबरौ।
कह्यौ मेरौ मानि, छाँड़ि अपनी बानि, टेक परि है जानि सब रावरी।
तोहिं देखे मया, मोहिं अतिहीं भई, कौन कौ सुवन, तू कहा आयौ।
मरौ वह कंस, निरबंस वाकौ होइ, करयौ यह गंस तोकौं पठायौ।
कंस कौं मारिहौं धरनि निरबारिहौं, अमर उद्धारि हौं, उरग-धरनी।
सूर प्रभु के बचन सुनत, उरगिनि कह्यौ, जाहि अब क्यौं न, मति भई मरनी।।551।।