कहहु नाथ कहँ आवई, कियौ कौन पर छोहु।
भीषम कै रुकमिनि हरन, सावधान सब होहु।।
आवत देख्यौ विप्र जोरि कर रुकमिनि धाई।
कहा कहैगौ आनि हिऐ धकधकी लगाई।।
विप्र आनि माला दई कहे कुसल के बैन।
कुँअरि पत्यारौ तब करयौ जब रथ देख्यौ नैन।।
गए कंचुकिबँद टूति लूटि हिरदै सौ पाई।
करति मनहि मन सब निकट रथ दियौ दिखाई।।
तिहूँ लोक के कंत हो, हौ दासी प्रभु जानि।
रुकमिनि विनती करति है, लाज आपुही मानि।।