कहत हलधर कह्यौ मानि मेरौ।
अखिल ब्रह्मांड के नाथ ह्याँ है खरे, गज मारि जीव अब लेउँ तेरौ।।
यह सुनत रिस भरयौ, दौरिबे कौ परयौ, सूँडि झटकत पटकि कूक पारयौ।
घात मन करत लै डारिहौ दुहुनि पर, दियौ गज पेलि आपुन हँकारयौ।।
लपकि लीन्हौ धाइ, दबकि उर रहे दोउ, भ्रम भयौ गजहिं कहँ गए वे धौं।
अरयौ दै दसन धरनि कढ़े वीर दोउ, कहत अबही याहि मारै कैधौ।।
खेलिहैं संग दै हाँक ठाढ़े भए, स्याम पाछै राम भए आगे।
उतहिं वे पूँछ गहि जात ये सुंडि छवै, फिरत गज पास चहुँ हँसन लागे।।
नारि महलनि खरी सबै अति ही डरी, नद के नद दोउ गज खिलावै।
'सूर' प्रभु स्याम बलराम देखतिं त्रसित बचै ये कुँवर विधि सौ मनावै।।3056।।