कर लिये डफहिं बजावै, हो हो हो सनाक खेलार होरी की।
संग सखा सब बनि बनि आवत, छवि मोहन हलधर जोरी की।।
ताल मृदंग बजावत गावत, भावति धुनि मुरली थोरी की।
लाल गुलाल समूह उड़ावत, फेंट कसे अबीर झोरी की।।
खेलत फाग करत कौतूहल, मत्त फिरै मन्मथ धोरी की।
बरन बरन सिर पाग चौतनी, कछु कटि छवि चंदन खोरी की।।
उतहिं सुनत वृषभानुसुता लई, तरुनि बोलि सब दिन थोरी की।
नीलांबर कचुकि सुरंग तनु, अति राजति राधा गोरी की।।
मनु दामिनि घनमध्य रहति दुरि, प्रगट हसनि चितवनि भोरी की।
नख सिख सजि सिंगार ब्रजजुवती, तनु डंडिया कुँसुभी बोरी की।।
पान भरे मुख कमकत चौका, भाल दिये बेदी रोरी की।
कनक कलस कोटिक कर लीन्हे, भरि फुलेल रँग रँग घोरी की।।
जुवति बृंद ब्रजनारि संग लै, जाइ गहनि ब्रज की खोरी की।
घर घर तै धुनि सुनि उठि धाई, जे गुरुजन पुरजन चोरी की।।
हाथनि लै भरि भरि पिचकारी, नाना रंग सुमन बोरी की।
कोउ मारति, कोउ दाउँ निहारति, अरसपरस दौरादौरी की।।