कर तै लकुट डारि नँदरानी।
रोस निवारि आपनै सुत कौ बदन बिलोकि अयानी।।
देखि त्रास तन नमित बदन कियो मलिन ज्योति कुँम्हिलानी।
मानौ हिमकर उदित मुदित अति कुमुद कली सकुचानी।।
कन राजत उर खेद स्वेदजल उपमा जिय यह आनी।
ज्यौ निज पति कौ दुखित देखि श्री रुदन करति अकुलानी।।
क्यौ तोहिं भुज पसारि आवत है ‘सूर’ कठिन करि बानी।
जा मुख मध्य बिस्व निरख्यौ तब अब क्यौ ताहि भुलानी।। 23 ।।